Trump Tariff Impacts: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को एक बड़ा आर्थिक व रणनीतिक फैसला लिया, जिसके तहत 1 अगस्त 2025 से भारत से आने वाले सभी उत्पादों पर 25% अतिरिक्त आयात शुल्क लगाया जाएगा। इसके साथ ही, ट्रंप प्रशासन ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि भारत रूस से सैन्य उपकरण और तेल की खरीद जारी रखता है, तो उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा। अमेरिका के इस कदम को भारत पर रणनीतिक दबाव बनाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
अमेरिका के इस फैसले पर भारतीय औषधि निर्यात संवर्धन परिषद (Pharmexcil) ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। परिषद के चेयरमैन नमित जोशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह फैसला अमेरिका में आवश्यक जीवनरक्षक दवाओं की कीमतों में भारी वृद्धि करेगा। उन्होंने चेताया कि इस नीति का सबसे बड़ा नुकसान अमेरिका के ही मरीजों और वहां की स्वास्थ्य प्रणाली को उठाना पड़ेगा।
सेंट्रिएंट फार्मास्युटिकल्स में वाणिज्यिक निदेशक और फार्मेक्सिल के अध्यक्ष नामित जोशी ने टैरिफ पर बताया है कि, “भारत से अमेरिका को भेजी जाने वाली दवाएं, खासकर जेनेरिक मेडिसिन, दुनिया की सबसे सस्ती और गुणवत्तापूर्ण मानी जाती हैं। इन पर 25% आयात शुल्क का सीधा असर उनकी कीमत पर पड़ेगा, जिससे अमेरिकी स्वास्थ्य बजट और बीमा लागत में बढ़ोतरी तय है।”
नमित जोशी के मुताबिक, अमेरिका अपनी जेनेरिक दवाओं की लगभग 47% जरूरत भारत से पूरी करता है। कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, संक्रमण और अन्य गंभीर बीमारियों की दवाएं भारत की फार्मा कंपनियां किफायती दरों पर, उच्च गुणवत्ता के साथ अमेरिका को उपलब्ध कराती हैं। इस वजह से भारत, अमेरिका के लिए एक अनिवार्य रणनीतिक आपूर्तिकर्ता बन चुका है।
फार्मेक्सिल ने चेताया कि भारत से अमेरिका को निर्यात की जाने वाली दवाओं के साथ-साथ API (Active Pharmaceutical Ingredients) की कीमतों में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी होगी। इससे अमेरिकी बाजार में दवाओं की MRP (अधिकतम खुदरा मूल्य) बढ़ेगी, जिसका सीधा असर वहाँ के उपभोक्ताओं और हेल्थ इंश्योरेंस सिस्टम पर पड़ेगा।
जोशी ने यह भी कहा कि यदि अमेरिका फार्मा सप्लाई को किसी अन्य देश में स्थानांतरित करने की कोशिश करता है, तो इसमें कम से कम 3 से 5 वर्ष लग सकते हैं। इस बीच, दवाओं की आपूर्ति में रुकावट और अस्थिरता से न केवल कीमतें और बढ़ेंगी, बल्कि कई आवश्यक दवाओं की कमी भी उत्पन्न हो सकती है। भारत जैसी उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता अमेरिका को किसी और देश से नहीं मिल सकती।
फार्मेक्सिल ने बताया कि वह अमेरिका के नीति-निर्माताओं से लगातार संवाद में है। परिषद का उद्देश्य है यह समझाना कि भारत की दवा कंपनियां केवल एक व्यापारिक भागीदार नहीं, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य तंत्र की रीढ़ हैं। उनका मानना है कि यह निर्णय अंततः अमेरिका के ही नागरिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा के खिलाफ जाएगा।
वहीं, विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह कदम अल्पकालिक रणनीति के तहत भारत पर दबाव बनाने का प्रयास है, लेकिन इसका असर अमेरिका की आंतरिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ना तय है। फार्मा इंडस्ट्री के अलावा, अमेरिका में उपभोक्ता वस्तुओं की लागत और दवा कंपनियों के मुनाफे पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।