Court judgement women rights: देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश को लेकर एक ऐतिहासिक टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि मातृत्व अवकाश महिलाओं के प्रजनन अधिकारों का अहम हिस्सा है और यह उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार से जुड़ा हुआ है।
यह टिप्पणी तमिलनाडु सरकार की एक महिला कर्मचारी की याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई। दरअसल, उस महिला को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश देने से इसलिए मना कर दिया गया क्योंकि उसकी पहली शादी से पहले ही दो संतानें थीं। जबकि राज्य सरकार के नियम के मुताबिक, मातृत्व लाभ सिर्फ पहले दो बच्चों तक सीमित है।
महिला कर्मचारी ने कोर्ट में बताया कि उसने अपनी पहली शादी से हुए दोनों बच्चों के लिए कभी मातृत्व अवकाश नहीं लिया और न ही किसी प्रकार का लाभ प्राप्त किया। इसके अलावा, उसने यह भी कहा कि वह दूसरी शादी के बाद ही सरकारी सेवा में नियुक्त हुई थी।
महिला की ओर से पैरवी कर रहे वकील केवी मुथुकुमार ने दलील दी कि राज्य सरकार का यह फैसला संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, क्योंकि महिला को वह लाभ नहीं मिला जिसके लिए वह पहली बार पात्र हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि मातृत्व अवकाश को इस प्रकार सीमित करना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत लेकर आया है जिन्हें इस तरह के तकनीकी आधारों पर अधिकार से वंचित किया जाता है।