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jharkhand News:अधिकारी खुद नहीं पढ़ाते सरकारी स्कूल में, फिर कैसे सुधरेगी व्यवस्था? पासवा का बड़ा खुलासा!

jharkhand News:  प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन (पासवा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक दुबे ने झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों को दुर्भावना के तहत बदनाम करने की कोशिशें हो रही हैं, जबकि यही स्कूल राज्य की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ हैं। उन्होंने दावा किया कि प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ साजिश रची जा रही है, जबकि सरकार स्वयं इन्हें प्रोत्साहन दे रही है।

सरकारी कर्मचारियों से की अपील   

दुबे ने सुझाव दिया कि यदि सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, शिक्षक और प्रधानाध्यापक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाएं, तो वहां की व्यवस्था में सुधार होगा और निजी विद्यालयों पर भी अनावश्यक दबाव नहीं पड़ेगा।

सिफारिशी चिट्ठियां उजागर करें, तो बेनकाब होंगे कई चेहरे  

आलोक दुबे ने दावा किया कि अगर निजी विद्यालय उन सिफारिशी पत्रों को सार्वजनिक कर दें, जो उन्हें अधिकारियों और नेताओं से मिलते हैं, तो कई प्रभावशाली लोगों का दोहरा चरित्र सामने आ जाएगा। इससे साफ होगा कि वे खुद भी निजी स्कूलों की शिक्षा को सरकारी स्कूलों से बेहतर मानते हैं। दुबे का कहना है कि प्राइवेट स्कूलों को बदनाम करना एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति या योजनाबद्ध अभियान का हिस्सा है, जिसका मकसद झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचाना है।

सरकारी स्कूलों में मुफ्त सुविधाएं के बावजूद झुकाव प्राइवेट स्कूलों की ओर 

उन्होंने तर्क दिया कि जब सरकारी स्कूलों में मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, साइकिल और भोजन जैसी सुविधाएं मिल रही हैं, फिर भी लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं — यह इस बात का प्रमाण है कि निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता अधिक है।

प्राइवेट स्कूलों की आधुनिक और समर्पित व्यवस्था:

दुबे ने निजी स्कूलों को छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए बेहतर विकल्प बताया। उन्होंने कहा कि यहां स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब, पुस्तकालय, खेलकूद की सुविधाएं, डिजिटल लर्निंग, सह-पाठ्यक्रम गतिविधियां, व्यक्तित्व निर्माण के अवसर आदि बेहतर ढंग से उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि निजी विद्यालयों में ओलंपियाड, क्विज, डिबेट्स और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई जाती है, जिससे छात्र अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी प्रतिभा दिखा पाते हैं। पासवा का मानना है कि निजी विद्यालयों की फीस उनकी सेवाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रशिक्षित स्टाफ और गुणवत्ता के अनुरूप है। यह मुनाफाखोरी नहीं, बल्कि अच्छी शिक्षा के लिए लिया जाने वाला न्यूनतम शुल्क है।

ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और रोजगार का साधन:

उन्होंने कहा कि झारखंड के कई ग्रामीण इलाकों में निजी विद्यालय न्यूनतम शुल्क लेकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं और स्थानीय स्तर पर रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।प्राइवेट स्कूलों में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग, रिपोर्ट फीडबैक और ओपन सेशंस के माध्यम से अभिभावकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, जिससे बच्चों की प्रगति में और सुधार होता है।पासवा ने राज्य की जनता से अपील की है कि वे निजी स्कूलों के खिलाफ चल रहे किसी भी नकारात्मक अभियान का हिस्सा न बनें और शिक्षा के वास्तविक महत्व को समझें। साथ ही, अपने बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए प्राइवेट स्कूलों को समर्थन दें।