Life Style: पुरुषों में शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया यानी स्पर्मेटोजेनेसिस और उनका संग्रहण स्थल एपिडीडाइमिस यदि सामान्य से अधिक गर्म हो जाए तो यह स्थिति प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक असर डाल सकती है। वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हो चुका है कि शरीर के सामान्य तापमान (लगभग 37°C) की तुलना में शुक्राणु उत्पादन के लिए 2 से 3 डिग्री सेल्सियस कम तापमान की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि प्रकृति ने शुक्राणु निर्माण की प्रक्रिया को शरीर के बाहर स्थित स्क्रोटम में रखा है, जहां सामान्य तापमान 33°C से 35°C के बीच होता है।
हालिया अध्ययनों से पता चला है कि गर्म पानी के टब, स्टीम बाथ और टाइट कपड़ों का नियमित उपयोग स्क्रोटल तापमान को बढ़ा सकता है, जिससे शुक्राणु की गुणवत्ता और संख्या पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, एक स्वस्थ पुरुष में प्रति मिलिलीटर शुक्राणुओं की संख्या 15 से 200 मिलियन होनी चाहिए। यदि यह संख्या कम हो जाए तो ओलिगोस्पर्मिया (कम शुक्राणु संख्या) या एजोस्पर्मिया (शुक्राणुओं की पूर्ण अनुपस्थिति) जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे संतान प्राप्ति में कठिनाई हो सकती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर 6 में से 1 दंपती को बांझपन की समस्या है, जिसमें करीब 40% मामलों में पुरुषों की भूमिका होती है।
शोध में पाया गया है कि 30 वर्ष से अधिक आयु के युवाओं में जो लैपटॉप और मोबाइल जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का घंटों तक उपयोग करते हैं, उनमें शुक्राणुओं की गतिशीलता और संख्या दोनों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है। खासकर जब ये उपकरण जांघों पर रखकर या पॉकेट में लंबे समय तक इस्तेमाल किए जाते हैं, तो शरीर के निचले हिस्से का तापमान बढ़ जाता है। इसके साथ ही, Wi-Fi रेडिएशन और मोबाइल सिग्नल्स से उत्पन्न इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड (EMF) भी डीएनए डैमेज और टेस्टिकुलर स्ट्रेस का कारण बन सकते हैं, जिससे शुक्राणु की गुणवत्ता और जीवन शक्ति प्रभावित होती है।
प्रजनन क्षमता और संपूर्ण स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए संतुलित और पोषक आहार जरूरी है। साबुत अनाज, हरी पत्तेदार सब्ज़ियां, और प्रोटीन युक्त आहार को अपने भोजन में शामिल करें। साथ ही, विटामिन C, E, जिंक, फोलिक एसिड, और सेलेनियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें। तनाव से दूर रहें और रोज़ाना कम से कम 7-8 घंटे की नींद लें। धूम्रपान, शराब और अन्य नशीले पदार्थों से दूरी बनाए रखें। नियमित व्यायाम, योग, और प्राणायाम (विशेषकर अनुलोम-विलोम और कपालभाति) न केवल मानसिक शांति प्रदान करते हैं, बल्कि शुक्राणु की गुणवत्ता भी सुधार सकते हैं।
डिजिटल गैजेट्स के दुष्प्रभाव से बचने के लिए कुछ सावधानियां अपनाना जरूरी है। लैपटॉप का उपयोग करते समय लैप डेस्क या कुशन का इस्तेमाल करें ताकि गर्मी शरीर को सीधे प्रभावित न करे। टेबल पर बैठकर काम करें और हर एक घंटे में 5-10 मिनट का ब्रेक लें। मोबाइल को पैंट की पॉकेट में लंबे समय तक न रखें, विशेषकर गर्मी के मौसम में। फोन का इस्तेमाल करते समय स्पीकर या ईयरफोन का उपयोग करें, ताकि रेडिएशन का प्रभाव कम हो। बाजार में उपलब्ध EMF प्रोटेक्शन केस और एंटी-रेडिएशन पैड्स का इस्तेमाल करें। आंखों को स्क्रीन से बचाने के लिए ब्लू लाइट फिल्टर, कम ब्राइटनेस, और सही पोश्चर अपनाएं। हर 20 मिनट के बाद 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें, यानी 20-20-20 नियम अपनाएं।
बदलती जीवनशैली, डिजिटल डिवाइसेज का अत्यधिक प्रयोग और असंतुलित खानपान ये सभी कारक युवाओं के प्रजनन स्वास्थ्य, नेत्र स्वास्थ्य, और मानसिक स्थिति को प्रभावित कर रहे हैं। यह जरूरी है कि समय रहते सतर्कता बरती जाए और डिजिटल डिटॉक्स, हेल्दी डाइट, और नियमित ब्रेक्स जैसी आदतों को अपनाकर जीवनशैली को संतुलित बनाया जाए।