Labour Law India: भारत में श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई तरह के श्रम कानून बनाए गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
खासकर प्राइवेट कंपनियों और(Unorganised)असंगठित क्षेत्रों में इन कानूनों की अनदेखी आम बात बन चुकी है। न काम की गारंटी होती है, न समय का सम्मान और न ही मानसिक शांति मिलती है । यही वजह है कि देश के करोड़ों युवा सरकारी नौकरियों की ओर आकर्षित होते हैं। उन्हें लगता है कि सरकारी नौकरी ही सुरक्षा, सम्मान और वर्क-लाइफ बैलेंस दे सकती है, जो निजी क्षेत्र देने में विफल रहा है।देश में बड़े MNC कंपनिया जो IT sector से जुडी है ,यहाँ का वर्क कल्चर विदेशी कल्चर से मिलती जुलती पाई जाती है क्योंकि (IT sector) को ग्लोबल सर्विस का हिस्सा माना जाता है |
भारत में न्यूनतम वेतन, बोनस, ग्रेच्युटी, पीएफ, मातृत्व अवकाश, और काम के घंटे जैसे कई कानून हैं, लेकिन अधिकांश कंपनियां इन नियमों का पालन नहीं करतीं। खासकर अनुबंध पर काम करने वाले या असंगठित क्षेत्र के कर्मचारी अक्सर इन अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
मिनिमम वेजेज एक्ट (Minimum Wages Act, 1948):
हर कर्मचारी को उसकी योग्यता और काम के घंटे के अनुसार न्यूनतम वेतन मिलना चाहिए। लेकिन हकीकत कई प्राइवेट संस्थानों और खासकर असंगठित क्षेत्रों में आज भी मजदूरों को बहुत कम भुगतान किया जाता है।
श्रमजीवी बीमा अधिनियम (ESIC Act): कर्मचारियों को स्वास्थ्य सुविधाएं और दुर्घटना बीमा की गारंटी देता है। भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार अधिनियम (BOCW Act): निर्माण क्षेत्र के मजदूरों की सुरक्षा और कल्याण के लिए बनाया गया कानून है , जिसका पालन बहुत ही कम किया जाता है।
मातृत्व लाभ अधिनियम (Maternity Benefit Act, 1961):
गर्भवती महिलाओं को जरुरत के हिसाब से अवकाश और वेतन की सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन कई निजी संस्थानों में इसे नजरअंदाज किया जाता है।
विकसित देशों में अलग तस्वीर
अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे विकसित देशों में श्रम कानूनों का सख्ती से पालन होता है। यहां प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले कर्मचारियों को भी सुरक्षा, छुट्टी, और स्वास्थ्य बीमा जैसी सुविधाएं मिलती हैं। इसलिए वहां के नागरिकों में सरकारी नौकरी के लिए कोई खास दीवानगी नहीं होती।
मानसिक शांति बनाम प्रेशर कल्चर
हालाँकि भारत में प्राइवेट कंपनियों में ओवरटाइम, टारगेट प्रेशर और जॉब असुरक्षा आम हो चुकी है। कर्मचारी हमेशा इस डर में जीते हैं कि नौकरी कब छिन जाए। इसके उलट, सरकारी नौकरियों में स्थायित्व, तय समय पर वेतन, और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी मिलती है।
सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम
एक्सपर्ट्स के अनुसार अगर भारत को वैश्विक स्तर पर श्रम सुधारों में आगे बढ़ना है, तो सिर्फ कानून बनाना काफी नहीं होगा, उन्हें सख्ती से लागू करना भी जरूरी होगा। तभी देश में प्राइवेट सेक्टर को भी भरोसेमंद और आकर्षक बनाया जा सकेगा। जब तक भारत में निजी क्षेत्र में काम करने वालों को उचित अधिकार, सुरक्षा और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक युवा सरकारी नौकरी को ही सबसे बेहतर विकल्प मानते रहेंगे।
बता दे कि कई बार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए फैसले दिए हैं, लेकिन अमल की जिम्मेदारी प्रशासन पर है, जो अक्सर ढीली रहती है। लेबर इंस्पेक्टरों की कमी, रिश्वत और जांच में लापरवाही भी बड़ी समस्याएं हैं। जब तक श्रम कानूनों का सख्ती से पालन नहीं होता, तब तक प्राइवेट जॉब में कार्यरत कर्मचारी खुद को असुरक्षित महसूस करते रहेंगे।
अगर भारत को एक संतुलित और न्यायसंगत कार्य संस्कृति की ओर बढ़ना है, तो सरकार को कानून लागू करने में पारदर्शिता और सख्ती दिखानी होगी। तभी युवा निजी क्षेत्र को भी करियर के रूप में गंभीरता से अपनाएंगे।