Supreme Court on Kota: देशभर में इंजीनियरिंग और मेडिकल में दाखिले के लिए लाखों छात्र JEE Advanced और NEET UG जैसी कठिन परीक्षाओं की तैयारी करते हैं, जिसके लिए राजस्थान का कोटा शहर वर्षों से एक प्रमुख कोचिंग हब बना हुआ है। लेकिन, कोटा की इस पहचान के पीछे एक कड़वा सच छुपा है—हर साल यहां बढ़ती छात्र आत्महत्याएं।
इस संवेदनशील मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कड़ी टिप्पणी की है। शुक्रवार को IIT खड़गपुर के एक छात्र की आत्महत्या मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कोटा में हो रही आत्महत्याओं पर गहरी चिंता जताई।
कोर्ट ने राजस्थान सरकार से सवाल किया कि आप एक राज्य के रूप में क्या कर रहे हैं? छात्र आत्महत्या क्यों कर रहे हैं और सिर्फ कोटा में ही क्यों? राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि 2025 में अब तक 14 छात्र कोटा में आत्महत्या कर चुके हैं, और इस गंभीर मामले की जांच के लिए SIT गठित की गई है। लेकिन कोर्ट इस जबाब से संतुष्ट नहीं हुआ। जस्टिस पारदीवाला ने स्पष्ट कहा, "बच्चों की जान जा रही है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।" उन्होंने सरकार से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, परीक्षा के दबाव और कोचिंग सेंटर की भूमिका पर ठोस कार्ययोजना पेश करने की अपेक्षा जताई।
कोर्ट का सख्त रुख – FIR में देरी पर नाराजगी
बता दे कि IIT खड़गपुर केस में भी सुप्रीम कोर्ट ने FIR दर्ज करने में हुई 4 दिन की देरी पर सवाल उठाया और कहा कि यदि जरूरी हो, तो थाना प्रभारी पर अवमानना का मुकदमा भी चलाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को कोचिंग इंडस्ट्री और राज्य सरकार के लिए एक कड़ी चेतावनी माना जा रहा है। अब वक्त आ गया है जब इस पूरे सिस्टम को आत्ममंथन करने की जरूरत है। बढ़ता मानसिक दबाव, नतीजों का डर और छात्रों की भावनात्मक अनदेखी—ये अब सिर्फ कोटा की नहीं, बल्कि देशभर की समस्या बन चुकी है। यह एक स्पष्ट संदेश है कि अब सिर्फ रैंक और रिजल्ट नहीं, बच्चों की जिंदगी और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्राथमिकता देनी होगी।