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Tatkal Ticket scam: रेलवे टिकट बुकिंग में बड़ा फर्जीवाड़ा, बिक रही फर्जी ID; टेलीग्राम पर सक्रिय रैकेट का पर्दाफाश

Tatkal Ticket scam: भारतीय रेलवे (Indian Railways) की तत्काल टिकट सुविधा, जो आपातकालीन परिस्थितियों में यात्रियों को यात्रा की सुविधा देने के लिए शुरू की गई थी, अब बॉट्स और एजेंटों के नियंत्रण में आती जा रही है। यात्रा से ठीक एक दिन पहले खुलने वाली यह सेवा आम यात्रियों के लिए अब एक जटिल समस्या बन गई है, क्योंकि महज कुछ सेकंड में सभी टिकट बुक हो जाते हैं। वह भी एजेंटों और बॉट्स के माध्यम से।

दरअसल, जांच में टेलीग्राम और वॉट्सऐप पर सक्रिय 40 से अधिक ऐसे ग्रुप्स की पहचान की है, जो ई-टिकटिंग से जुड़े एक बड़े ऑनलाइन ब्लैक मार्केट का हिस्सा हैं। इन ग्रुप्स में हजारों एजेंट्स सक्रिय रहते हैं जो सरकारी प्रतिबंधों और नियमों के बावजूद धड़ल्ले से फर्जी बुकिंग का कारोबार चला रहे हैं।

रेल मंत्रालय ने इस समस्या को गंभीरता से लेते हुए 1 जुलाई 2024 से नए नियम लागू किए हैं, जिनके तहत अब तत्काल टिकट केवल IRCTC की वेबसाइट या आधिकारिक मोबाइल ऐप से ही बुक किए जा सकेंगे। इसके लिए यूजर का आधार कार्ड उसके IRCTC अकाउंट से लिंक होना अनिवार्य कर दिया गया है। लेकिन इस कदम के तुरंत बाद ही ई-टिकटिंग रैकेट्स ने नियमों के खिलाफ अपना खेल शुरू कर दिया। वे अब आधार-वेरिफाइड IDs और OTPs खुलेआम बेच रहे हैं, जिनकी कीमत महज 360 रुपये तक है।

जांच में पाया गया कि इन रैकेट्स में सिर्फ एजेंट ही नहीं, बल्कि तकनीकी विशेषज्ञ, साइबर अपराधी और ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर डेवलपर भी शामिल हैं। ये लोग IRCTC के सिस्टम की खामियों का लाभ उठाकर बॉट्स, ऑटोफिल ब्राउज़र एक्सटेंशन और VPS (वर्चुअल प्राइवेट सर्वर) का उपयोग करके टिकट बुकिंग को अपने पक्ष में मोड़ लेते हैं। इससे वास्तविक उपयोगकर्ता टिकट पाने से वंचित रह जाते हैं क्योंकि उन्हें स्लो लोडिंग पेज, फेल्ड ट्रांजैक्शन और ऑक्यूपाइड सीट्स का सामना करना पड़ता है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 'Fast Tatkal Software' नामक एक टेलीग्राम ग्रुप की तीन महीने तक निगरानी की और पाया कि वहां टिकटिंग ऑपरेशन को अत्यधिक संगठित तरीके से चलाया जा रहा है। बॉट्स द्वारा बुकिंग की प्रक्रिया पूरी तरह ऑटोमेटेड है, जिसमें यूजर लॉगिन, ट्रेन की जानकारी, यात्री डिटेल्स और पेमेंट डेटा सब कुछ कुछ ही सेकंड में ऑटोफिल हो जाता है। दावा है कि टिकट एक मिनट से भी कम समय में कन्फर्म हो जाता है। आम यूजर के लिए यह लगभग असंभव है।

रैकेट के मुख्य संचालक Dragon, JETX, Ocean, Black Turbo और Formula One जैसी वेबसाइट्स चलाते हैं, जो बॉट्स 999 रुपये से 5,000 रुपये तक में बेचते हैं। खरीद के बाद ग्राहकों को टेलीग्राम चैनलों पर गाइड किया जाता है कि इन बॉट्स को ब्राउजर में कैसे इंस्टॉल करें और किस तरह ऑटोफिल फीचर्स से बुकिंग तेज करें।

सिर्फ बुकिंग नहीं, ये बॉट्स यूजर्स की निजी जानकारी भी चुराते हैं। VirusTotal जैसे मैलवेयर स्कैनर से विश्लेषण में पता चला कि WinZip नाम की एक APK फाइल में ट्रोजन मैलवेयर छिपा था, जो यूजर के डेटा को चुराने के लिए डिजाइन किया गया था। यानी ये टिकटिंग बॉट साइबर जाल का एक हिस्सा हैं जो भोले-भाले यूजर्स को निशाना बना रहे हैं।

रेल मंत्रालय बताया तत्काल बुकिंग के पहले पांच मिनट में कुल लॉगिन प्रयासों का 50% बॉट ट्रैफिक से आता है। इसके जवाब में IRCTC के एंटी-बॉट सिस्टम द्वारा अब तक 2.5 करोड़ से अधिक फर्जी यूजर आईडी को निलंबित किया जा चुका है। इसके साथ ही मंत्रालय ने यह भी आदेश दिया है कि अब तत्काल बुकिंग शुरू होने के पहले 30 मिनट तक किसी भी एजेंट को टिकट बुकिंग की अनुमति नहीं होगी, चाहे वह AC कोच हो या नॉन-AC।

यह मामला साफ दर्शाता है कि किस तरह तकनीकी शोषण से रेलवे की सेवाएं खतरे में पड़ रही हैं। हालांकि रेलवे की नई नीतियां सराहनीय हैं, लेकिन इस संगठित साइबर अपराध से निपटने के लिए और अधिक सख्त साइबर निगरानी और कड़े कानूनी कदमों की आवश्यकता है।