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सोशल मीडिया पर वायरल हुई शादी के दहेज की लिस्ट, गहने से लेकर तकिया का कवर तक मांग लिया

भारत में दहेज लेना और देना दोनों ही गैरकानूनी हैं, लेकिन इसके बावजूद यह प्रथा भारतीय शादियों का हिस्सा बनी हुई है। दहेज प्रथा न केवल महिलाओं के खिलाफ भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देती है, बल्कि परिवारों पर भारी आर्थिक बोझ भी डालती है। साथ ही, यह समाज में असमानता और लालच को भी बढ़ावा देती है। इसी बीच, सोशल मीडिया पर 1993 में दिए गए दहेज की एक लिस्ट वायरल हो गई है, जिसे लेकर अब दहेज प्रथा पर एक नई बहस शुरू हो गई है।

रेडिट पर r/delhi नामक पेज पर silently_reading2 हैंडल से एक यूजर ने "1993 में मेरी बुआ का दहेज" शीर्षक से चार पन्नों की तस्वीरें शेयर कीं, जो शादी में दिए गए सामानों की पूरी लिस्ट थी। यूजर का दावा है कि 30 साल पहले उसकी बुआ की शादी में यह सब कुछ दहेज के रूप में दिया गया था। लिस्ट में सामानों का उल्लेख इस प्रकार था।

फर्नीचर: सोफा सेट, डबल बेड, ड्रेसिंग टेबल, अलमारी
 इलेक्ट्रॉनिक सामान: फ्रिज, टीवी, सिलाई मशीन, मिक्सी, ग्राइंडर
 कपड़े: साड़ियां, सूट, शॉल, रुमाल
 गहने: सोने के सेट, अंगूठी, चेन, पायल
 घरेलू सामान: बर्तन, बिस्तर, रजाई, चादर, तकिए

यह लिस्ट सिर्फ एक हिस्से का ही विवरण है। चार पन्नों में बहुत सारी छोटी-बड़ी चीजों का उल्लेख किया गया है। पूरी लिस्ट पढ़कर लोग हैरान रह गए हैं और अपनी प्रतिक्रिया देने लगे हैं।

नेटिजन्स ने इस लिस्ट पर कड़ा एतराज जताया है। कुछ लोग इस पर तंज कसते हुए कह रहे हैं कि हम भले ही कितनी तरक्की कर लें, लेकिन इस कुप्रथा से बाहर नहीं निकल पाए हैं। वहीं, कुछ यूजर्स ने उन लोगों को खरी-खोटी सुनाई जो दहेज लेना और देना पसंद करते हैं। 

एक यूजर ने मजाक करते हुए कहा, "इसे दहेज नहीं, बल्कि पूरा घर मांगना कहते हैं। ऐसा लग रहा है कि इस शख्स ने शादी नहीं, बल्कि नया घर बनाने के लिए शादी की थी।"एक अन्य यूजर ने लिखा, "लगता है फूफा के घर में केवल दीवार और फर्श थी।" जबकि एक ने चुटकी लेते हुए कहा, "नीला ड्रम मिसिंग है।" एक और यूजर ने सवाल किया, "पूरा घर ही मांग लिया, ये भी बता तो भैया कि आखिर फूफा करते क्या थे।"

दहेज पर कानूनी सजा

भारत में दहेज लेना और देना दोनों ही अवैध हैं। दहेज निषेध अधिनियम 1961 और भारतीय दंड संहिता 2023 के तहत दहेज मांगने, उत्पीड़न करने, या मृत्यु होने पर सख्त सजा और जुर्माने का प्रावधान है। इसके बावजूद, दहेज की यह कुप्रथा समाज में बनी हुई है, जो महिलाओं और उनके परिवारों पर न केवल मानसिक, बल्कि आर्थिक तनाव भी डालती है। यह मामला साबित करता है कि भारत में दहेज प्रथा को समाप्त करने के लिए अभी भी समाज और कानून को मिलकर अधिक और गंभीर प्रयास करने की आवश्यकता है।