Caste census: देश की आजादी के बाद भारत में एक बार फिर जातिगत जनगणना की चर्चा जोरों पर है। मोदी सरकार ने हाल ही में ऐलान किया है कि आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़े भी शामिल किए जाएंगे, और इसे लेकर कहीं न कहीं सियासत गरमा गई है।
इस फैसले के बाद सबसे ज्यादा मुखर होकर सामने आए हैं कांग्रेस नेता राहुल गांधी। राहुल लगातार हर मंच से जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं। लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि कभी कांग्रेस और खुद उनके परिवार ने इस विचार का खुलकर विरोध किया था।
दरअसल, आजादी के बाद पहली बार 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान जातिगत जनगणना कराई गई थी। इसके बाद आज़ाद भारत में जब 1951 में जनगणना हुई, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने जातिगत आधार पर गिनती को सिरे से नकार दिया। उनका मानना था कि यह समाज को बांटने वाला कदम होगा और इससे आरक्षण जैसी नीतियों को बढ़ावा मिलेगा जो "अकुशलता और दोयम दर्जे के मानकों" को स्थापित कर सकती हैं।
बता दे कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी इसी रुख को बनाए रखा।ऐसा मन जाता है कि इंदिरा ने 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, जबकि राजीव गांधी ने 1990 में लोकसभा में जातिगत आरक्षण के खिलाफ जमकर बोला था। उन्होंने इसे समाज को जातियों में बांटने की राजनीति बताया था।
लेकिन अब राहुल गांधी इसी मुद्दे को लेकर कांग्रेस की राजनीति को धार देने में जुटे हैं। 2023 में जैसे ही चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के चुनावों की घोषणा की, कांग्रेस कार्यसमिति ने जातिगत जनगणना को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना दिया। राहुल गांधी सार्वजनिक मंचों से लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस तक, हर जगह जातिगत जनगणना की मांग को ज़ोरशोर से उठा रहे हैं। वह इसे "न्याय" दिलाने का जरिया मानते हैं।
राहुल का मानना है कि भारत में हाशिए पर खड़े समुदायों को उनकी असली भागीदारी तब ही मिल सकती है जब यह पता चले कि उनकी जनसंख्या कितनी है। इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अब इसे एक बड़े सामाजिक बदलाव के रूप में पेश कर रही है। वह खुलेआम सवाल पूछते हैं"आपकी जाति क्या है?"और कहते हैं कि यह सवाल सत्ता की असली चाबी है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि राहुल गांधी ने यह रणनीति इसलिए अपनाई है क्योंकि कांग्रेस की जनमानस में पकड़ कमजोर हुई है और जातिगत जनगणना का मुद्दा वोटर्स से जुड़ने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है। हरियाणा चुनाव में कांग्रेस ने वादा किया था कि सत्ता में आने पर वे जातिगत जनगणना कराएंगे, लेकिन जनता ने उन्हें मौका नहीं दिया। वहीँ भाजपा के कई नेताओं ने राहुल गाँधी से सवाल किया है कि इतने सालों से कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी लेकिन कभी भी वंचित समाज की याद नही आई लेकिन जब सत्ता से दूर हो गयी तब जाति का हथकंडा अपना रही है |
अब सवाल यही है कि क्या जातिगत जनगणना का मुद्दा कांग्रेस को नई ऊर्जा देगा या यह रणनीति भी अतीत की तरह सिर्फ एक चुनावी दांव बनकर रह जाएगी? फिलहाल, राहुल गांधी की सियासत एक ऐसे मोड़ पर है, जहां वे अपने पूर्वजों के विचारों से बिल्कुल उलट चल रहे हैं| और शायद इसी उलटबांसी में उन्हें सियासी उम्मीद नज़र आ रही है।