Bollywood News: सलमान खान की फिल्म ‘किक’ का यह डायलॉग ‘मेरे बारे में इतना मत सोचना… दिल में आता हूं, समझ में नहीं’अक्सर उनकी फिल्मों में इस्तेमाल होता है, और यह उनके करियर का सच भी है। हालांकि सलमान ने अपनी फिल्मी यात्रा में कई ऐसी फिल्में की हैं, जो दर्शकों को समझ में आई हैं, वहीं उनकी ज्यादातर फिल्में केवल फैन्स के दिल के भरोसे चलती रही हैं।
दरअसल, सलमान वह बॉलीवुड सुपरस्टार हैं जिनकी फिल्में दर्शक दिमाग को किनारे रखकर, केवल और केवल एंटरटेनमेंट के लिए देखते हैं। लेकिन 'सिकंदर' एक ऐसी फिल्म है, जो उनके पक्के फैंस के दिल का हार्ट रेट भी कम कर सकती है। ‘सिकंदर’ देखते हुए यह विश्वास करना मुश्किल है कि यह वही सलमान हैं, जिन्होंने ‘दबंग’, ‘बजरंगी भाईजान’, और ‘सुल्तान’ जैसी हिट फिल्मों में अपनी दमदार मौजूदगी दिखाई थी।
इसके अलावा, फिल्म का निर्देशन ए आर मुरुगदास ने किया है, जिन्होंने ‘गजनी’ और ‘हॉलिडे’ जैसी शानदार फिल्में दी है, लेकिन ‘सिकंदर’ के निर्माण के पीछे का विचार क्या था, यह समझ पाना बेहद कठिन है। और दिल से इस फिल्म को स्वीकार करना तो लगभग असंभव ही लगता है। इस फिल्म में कहानी क्या है और दर्शक देखना क्या चाहता है यह दर्शकों को भी समझ में नहीं आया है। वैसे हम आपको कहानी का प्लाट भी बता ही देते है।
‘सिकंदर’ का प्लॉट:
फिल्म की कहानी राजकोट के राजा साहब, संजय राजकोट (सलमान) के इर्द-गिर्द घूमती है। एक फ्लाइट के दौरान संजय एक मंत्री के बेटे से दुश्मनी कर लेते हैं, और इस दुश्मनी का परिणाम उनके एक करीबी को भुगतना पड़ता है। उनका करीबी अंगदान करता है, और इसके बाद वह मरकर अपनी अंगों से एक नई जिंदगी की शुरुआत करता है। अब संजय का मकसद है उन अंगों को लेकर आई समस्याओं को हल करना।
इस सफर में, संजय फिर से उस मंत्री के बेटे से टकराते हैं, जो संजय के करीबी के अंगों से जीवन प्राप्त करने वालों को परेशान करने पर तुला है। क्या राजा साहब इन लोगों को बचा पाएंगे? क्या वह मंत्री और उसके बेटे से बदला ले पाएंगे? इस तरह का प्लॉट एक पॉपुलर मसाला फिल्म बनने की पूरी संभावना रखता था, लेकिन इसके साथ जो ट्रीटमेंट हुआ, उसने फिल्म की पूरी लय को बिगाड़ दिया।
फिल्म का इलाज:
‘सिकंदर’ देखते हुए ऐसा महसूस होता है कि इसे छोटे-छोटे वीडियो क्लिप्स के ढाई घंटे लंबे कलेक्शन के रूप में बनाया गया है। फिल्म का फोकस पूरी तरह से एक्शन सीन्स और सलमान का भौकाल बनाने पर है, और ये सीन्स एक-दूसरे से जुड़ने के लिए कहानी के ट्विस्ट और टर्न्स को जोड़ते हैं। लेकिन फिल्म में किसी प्रकार की लय नहीं है।
कहानी के कुछ हिस्से तो बिल्कुल ही ढीले-ढाले लगते हैं, जैसे एक हिस्से में धारावी के स्लम की गंदगी है, तो दूसरे हिस्से में पंजाब में आतंकवाद का जिक्र किया गया है। एक और हिस्सा पारंपरिक परिवार की पिसती बहू के जीवन की बात करता है। ये मुद्दे इतने जल्दबाजी में हल कर दिए गए हैं, कि लगता ही नहीं कि कोई गहरी बात हो रही हो।
किरदारों की गहराई का अभाव:
फिल्म में किसी भी किरदार की कोई बैकस्टोरी नहीं दिखाई जाती। संजय की पत्नी साईश्री (रश्मिका मंदाना) के पास पति के लिए वक्त नहीं है, लेकिन वह किस काम में व्यस्त हैं, यह समझ में नहीं आता। संजय ने शादी क्यों की, ये भी स्पष्ट नहीं है। फिल्म के पहले हाफ में उनकी और रश्मिका की केमिस्ट्री बनाने में दो गाने लग जाते हैं, लेकिन उस केमिस्ट्री का कोई असर फिल्म में नजर नहीं आता। रश्मिका के, हीरो के बच्चे की मां बनने वाले सीक्वेंस अब लगभग हर फिल्म का हिस्सा बन गए हैं।
विलेन और एक्शन:
फिल्म के विलेन का मकसद उन तीनों लोगों को मार देना है, जिन्हें संजय के करीबी के अंग मिले हैं। इस लॉजिक को फिल्म इतना हल्का बना देती है कि यह सीरियस की बजाय मजाक लगने लगता है। विलेन के किरदार में सत्यराज जैसे शानदार अभिनेता भी बेअसर नजर आते हैं। इतने कमजोर विलेन से लड़ने के लिए हीरो का जोर लगाना उसे और कमजोर ही दिखाता है। फिल्म के एक्शन सीन्स भी बहुत साधारण और रूटीन तरीके से डिजाइन किए गए हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी फिल्म के मूड को सपोर्ट करने की बजाय उबाऊ लगता है।
सलमान खान की ‘सिकंदर’ एक कमजोर फिल्म साबित होती दिखाई दे रही है, जो अपनी कहानी, एक्शन और किरदारों के मामले में दर्शकों को निराश करती है। इस फिल्म में जो मसाला एंटरटेनमेंट का पूरा दम था, वह पूरी तरह से खत्म हो गया है। इस फिल्म को देखने का कोई खास उद्देश्य नहीं बनता और यह सिर्फ एक और रूटीन मसाला फिल्म बनकर रह जाती है।