Bihar News: बिहार और झारखंड के बीच अंतरराज्यीय बस परमिट की स्वीकृति और नवीकरण में हो रही देरी ने वाहन मालिकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। बिहार मोटर ट्रांसपोर्ट फेडरेशन के अध्यक्ष उदय शंकर प्रसाद सिंह ने परिवहन आयुक्त को पत्र लिखकर बताया कि परमिट प्रक्रिया में 6 महीने से एक साल तक का समय लग रहा है, जिससे निजी बस मालिकों को प्रतिदिन लाखों रुपये का आर्थिक नुकसान हो रहा है। स्वीकृत परमिट के मूल दस्तावेज मालिकों तक नहीं पहुंच रहे और मुख्यालय से पत्र जारी होने की सूचना भी समय पर नहीं दी जा रही। इसके चलते बसें बिना परमिट के खड़ी रहती हैं, जिससे यात्रियों को भी परेशानी हो रही है।
एक बड़ी समस्या यह है कि बिहार द्वारा हस्ताक्षरित परमिट को झारखंड में मान्यता नहीं मिल रही, जिसके कारण बसों को सीमा पर डिबुडीह जैसे चेकपोस्ट पर रोका जा रहा है। हाल ही में डिबुडीह में परिवहन अधिकारियों ने एक बस को जबरन रोककर चालक के साथ कथित दुर्व्यवहार किया, जिसकी निंदा INTUC श्रमिक नेता राजू अहलूवालिया ने की। उन्होंने मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। फेडरेशन ने 10 अगस्त को पटना में बैठक बुलाई है, जिसमें राज्यव्यापी चक्का जाम और अनिश्चितकालीन हड़ताल पर विचार किया जाएगा।
वाहन मालिकों ने पुरानी परमिट व्यवस्था पर भी सवाल उठाए हैं, जिसमें 0-5 साल पुरानी बसों के लिए 600 किमी और 5-10 साल पुरानी बसों के लिए 400 किमी की सीमा तय है। नई बसों की गुणवत्ता में सुधार के बावजूद नियम अपडेट नहीं हुए। मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 79 के तहत परमिट नियमों को सरल करने की जरूरत है। बिहार परिवहन विभाग ने ऑनलाइन सेवाओं को बढ़ावा दिया है, लेकिन परमिट प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी बनी हुई है। फेडरेशन ने मांग की है कि बिहार-झारखंड के बीच समन्वय समिति बनाकर 30 दिनों के भीतर परमिट स्वीकृति सुनिश्चित की जाए।
झारखंड में भी बस मालिकों ने इसी तरह की समस्याएं उठाई हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 310 बसों का भुगतान अभी तक लंबित है और अब विधानसभा चुनाव के लिए 400 बसें मांगी गई हैं। फेस्टिव सीजन में बसों की कमी से यात्रियों को दिक्कत हो सकती है। वाहन मालिकों ने चेतावनी दी है कि यदि समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो छठ पूजा जैसे व्यस्त सीजन में बस सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा होगी।