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Bihar minor girl trafficking: बिहार की गरीब लड़कियाँ बन रही हैं मानव तस्करी का शिकार... हरियाणा और राजस्थान में बेच रहे हैं दलाल!

Bihar minor girl trafficking:  बिहार की गरीब और पिछड़े बर्ग से आने वाली लड़कियाँ अब मानव तस्करी और जबरन शादी व देह व्यापार का शिकार बनती जा रही हैं। हाल ही में एक NGO द्वारा हरियाणा में किए गए सर्वे में 10,190 परिवारों में से 318 महिलाओं की पहचान की गई जिन्हें खरीदकर हरियाणा के पुरुषों से शादी करवा दी गई थी। इन 318 महिलाओं में से 27 महिलाएँ बिहार की हैं, जो हरियाणा लाई गईं और जबरन विवाह करवाया गया।

इसी तरह हाल ही में  एक सनसनीखेज मामला राजस्थान के कोटा जिले से सामने आया था | जहाँ बिहार और झारखंड से गरीब परिवारों की नाबालिग लड़कियों को 20 से 30 हजार रुपए में खरीदकर 2 से 5 लाख रुपए में बेचा जा रहा था। इन लड़कियों को नशे के इंजेक्शन देकर देह व्यापार में धकेला जा रहा था। पुलिस ने बाल कल्याण समिति की मदद से तीन नाबालिग लड़कियों को बचाया और तीन आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिनमें दो महिलाएँ भी शामिल थी |  

राजस्थान और हरियाणा में दुल्हन खरीदने की प्रथा एक गंभीर समस्या है, खासकर वहां के ख़राब लिंग अनुपात के कारण। हरियाणा में 2011 की जनगणना के अनुसार, 1000 लड़कों पर केवल 830 लड़कियां थीं, जिससे दुल्हन की कमी हुई और वहां  खरीदने की प्रथा बढ़ी। मीडिया रिपोर्ट्स कि माने तो  राजस्थान में, हडौती क्षेत्र (कोटा, बूंदी, झालावाड़, बारन) में दुल्हनें 50,000 से 1 लाख रुपये में खरीदी जाती हैं, और यह समृद्ध समुदायों में भी आम है। 

वहीँ गुजरात में मानव तस्करी के मामले 2016 के आंकड़ों के अनुसार भारत में तीसरे स्थान पर हैं, लेकिन दुल्हन खरीदने पर विशिष्ट हालिया रिपोर्ट्स कम हैं। फिर भी, मानव तस्करी के उच्च आंकड़ों को देखते हुए, ऐसा हो सकता है कि समान प्रथाएं वहां भी देखी गयी है। पीड़ितों की उम्र और लुभाने का तरीका रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पीड़ित मुख्य रूप से 18 से 24 साल की युवा महिलाएं हैं, जो गरीब क्षेत्रों से आती हैं और अक्सर परिवार या परिचितों के चंगुल में फंस जाती हैं।

इन महिलाओं को "परो" या "मोल की बहुएं" कहा जाता है, अक्सर बंगाल, बिहार, असम, झारखंड, केरल, और तमिलनाडु जैसे राज्यों से लाई जाती हैं। रिपोर्ट्स से पता चलता है कि यह प्रथा सभी जातियों में फैली हुई है, जिसमें जाट, ब्राह्मण, यादव, और रोड जाति शामिल हैं।खरीदने वाले लोग आमतौर पर ग्रामीण, अशिक्षित या कम शिक्षित, और छोटे किसान या कुशल, अर्ध-कुशल मजदूर होते हैं, मध्यस्थ के तौर पर (middlemen) कमीशन के रूप में 10,000 से लेकर 1 लाख से अधिक रुपये तक कमाते हैं।

इन घटनाओं ने बिहार में मानव तस्करी की गहराई और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर कर दिया है। यह ज़रूरी हो गया है कि बिहार सरकार और पुलिस प्रशासन मिलकर ऐसी घटनाओं पर सख्ती से रोक लगाए, गांव-गांव में जागरूकता फैलाए और पीड़ित परिवारों को सुरक्षा एवं न्याय दिलाने के लिए ठोस कदम उठाए।